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बसंत का साथ छोड़कर, यौवन चला गया | कविता

इस कविता में एक पिता का अपने युवा पुत्र पंकज सोनी के विछुड़ने (संसार छोड़ जाने) पर अपने वियोग को कैसे व्यक्त करते हैं वो देखिए। बहुत ही दिल भावुक कर देने वाली यह कविता स्वयं उस पिता द्वारा लिखी गई है।

बसंत का साथ छोड़कर, यौवन चला गया।

बसंत का साथ छोड़कर, यौवन चला गया।

जैसे भरे बसंत में, यौवन चला गया।।

खुसबू का साथ छोड़कर, पवन चला गया।

एक शान्त सा निस्तंभ, सा निश्चल पड़ा बदन

जैसे मोहन के तन से, अब मन चला गया।।

बसंत का साथ छोड़कर, यौवन चला गया।

ममता को मात दे गया, वात्सल्य वेदकर,

भाई की बॉह छोड़कर, राखी को तोड़कर,

इस घर का वो अनमोल, धन रतन चला गया।।

बसंत का साथ छोड़कर, यौवन चला गया।

कुल का दिया जहर पिया, ऐसा जीवन जिया,

हर सांस को किया हवन, जीवन अर्पण किया।

लपेटकर कफन मे वो, सपन चला गया।।

बसंत का साथ छोड़कर, यौवन चला गया।

चित्र कारती बसुनधरा, वीरान वन हरा भरा,

कोयल की कूक हूक सी, मुरली मधुर भी मूक सी

मलया गिरी को छोड़कर, चंदन चला गया।।

बसंत का साथ छोड़कर, यौवन चला गया।

हाय आह निकल न सकी, विकल सभी सखा-सखी,

चॉद भी पूछे कौन है, सूरज भी अब तो मौन है।

अरे ‘आनंद’ नंद का नंदन, चला गया।।

बसंत का साथ छोड़कर, यौवन चला गया।

जैसे भरे बसंत में, यौवन चला गया।

खुसबू का साथ छोड़कर, पवन चला गया।।

श्री कार्तिका नंद सोनी
(एडवोकेट)

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