बघेली लोकगीत कजरी सावन गीत जिसका बोल है, हरी रामा छाई घटा घनघोर बदरिया हमारे बघेलखण्ड की सबसे लोकप्रिय कजरी गीत है। जिसे सुनने के पर तन-मन मस्ती से झूम उठता है।
बघेली लोकगीत कजरी – हरी रामा छाई घटा घनघोर बदरिया कारी रे हारी
हरी रामा छाई घटा घनघोर बदरिया कारी रे हारी
हरी रामा छाई घटा घनघोर बदरिया कारी रे हारी
हरी रामा घुमड़ि-घुमड़ि के आए हैं बदरा भारी
हरी रामा गरजि-गरजि करै शोर बदरिया कारी रे हारी
हरी रामा छाई घटा घनघोर बदरिया कारी रे हारी।।
हारी रामा लपटि झपटि लहराएं बाग अउ बगैइचा
हारी रामा चलै हवा झकझोर बदरिया कारी रे हारी
हरी रामा छाई घटा घनघोर बदरिया कारी रे हारी।।
हरी रामा बरसत हैं दिन रात बदरिया रामा
हरी रामा सुझै साँझ नही भोर बदरिया कारी रे हारी
हरी रामा छाई घटा घनघोर बदरिया कारी रे हारी।।
हरी रामा भरि-भरि लहरै बाँध ताल अउ तलइया
हरी रामा बोलय मोरइला चित चोर बदरिया कारी रे हारी
हरी रामा छाई घटा घनघोर बदरिया कारी रे हारी।
बदरिया कारी रे हारी, बदरिया कारी रे हारी।।
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